नागपत्री एक रहस्य(सीजन-2)-पार्ट-30

"लक्षणा गर्व है मुझे तुम्हारा मित्र होने पर"!  तुम आज भी वही पुरानी रुक्मणी हो, जिसने  महज एक भेड़ को बचाने के लिए अपने प्राण दांव पर लगा दिए थे। तुम्हारे हृदय की विशालता और सबके लिए प्रेमभाव ही तुम्हें अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए मददगार साबित होता है। इस बात पर तनिक भी विचार मत करो, कि जिन नागमणियों को तुमने दान में दिया है, वह व्यर्थ में नही जाएगा। क्योंकि उसके पीछे तुम्हारा मंतव्य स्पष्ट और समाज के लिए कल्याणकारी था।

लक्षणा तुम्हारे इसी भाव को देखते हुए समस्त प्राणियों के प्रमुख ने उस दिन लोकसभा में नागमता के समक्ष अपनी अपनी शक्तियों का अंश प्रदान किया था, क्योंकि वे भली-भांति जानते थे, कि तुम कभी भी किसी जीव का अहित चाह सकते हो और ना ही उन्हें कभी मुसीबत में देख सकते हो।

लक्षणा विचार ना करो,,,, चलो पुनः गुरुवर के पास। उन्होंने अवश्य ही कोई और उपाय भी ढूंढ रखा होगा। पुनः तपकर शक्तियां तो प्राप्त की जा सकती है। लेकिन एक बार तड़पकर प्राण देने वाले उन पशु पक्षी और कीट पतंगो के प्राण वापस नहीं ला सकते थे।

लक्षणा तुम्हारा निर्णय बिल्कुल उचित था। मुझे एक पल के लिए तो लगा था कि तुम्हारा चयन स्वार्थी होकर मात्र अपने सखा को बचाने का ना हो। लेकिन तुमने पहला चुनाव उन निरीह प्राणियों का किया जो मुझे बहुत अच्छा लगा। यदि तुम्हारा चुनाव मात्र मैं होता, तो शायद उन प्राणियों की एक पल की तड़प से मैं खुद को माफ नहीं कर पाता। लेकिन मुझे पूर्ण विश्वास भी था कि तुम्हारा निर्णय सर्वथा लोक कल्याण के लिए ही होगा, कहते हुए  कदंभ ने लक्षणा को धन्यवाद दिया।

वही लक्षणा प्रसन्न थी, कि उसने अपने सखा को पुनः प्राप्त कर लिया। बाकी शक्तियां तो मिल ही जाएगी। तब कदंभ और लक्षणा दोनों ने मिलकर उस सरोवर की देवी, श्राप मुक्त हो चुके राजकुमार और उस तेजस्वी बालक को कोटि-कोटि धन्यवाद कह वापस लौट गए पुनः शक्ति संचय के लिए,,,,,,

कदंभ और लक्षणा को पुनः लौटकर आता देख आचार्य चित्रसेन जी अचंभित थे। और उन्होंने इसका कारण जानना चाहा। तब कदंभ और लक्षणा ने एक-एक वृतांत विस्तारपूर्वक चित्रसेन को कह सुनाया। जिसे आचार्य चित्रसेन बड़े ध्यान पूर्वक सुन रहे थे, कि तभी गुरुवर के आगमन से तीनों सचेत हो गए। और उन्हें प्रणाम किया।

गुरुवर ने प्रसन्नतापूर्वक उन तीनों को आशीष दे लक्षणा से संपूर्ण वृतांत को पुनः सुन और तर्क वितर्क के साथ संपूर्ण भावार्थ को समझ और भी प्रसन्नचित हुए। गुरुवर ने लक्षणा को आश्वासन कराया कि उसका निर्णय कभी भी गलत नहीं हो सकता। यदि किसी प्राणी के कष्ट को अनदेखा कर शक्ति को एकत्रित किया जाए या उसके कष्ट को ध्यान में ना रख अपनी शक्ति को बचाकर रखा जाए तो यह निरर्थक होगा, क्योंकि ऐसी शक्ति का कोई लाभ ही नहीं है। जो किसी प्राणी के प्राणों की रक्षा ही ना कर सके।

लक्षणा तुम व्यर्थ में चिंतित ना हो। हम पुनः देवी साधना कर उन शक्तियों को प्राप्त कर लेंगे। या तनिक भी विचार मत करो कि मैंने अपने जीवन की तपस्या का सम्पूर्ण फल तुम्हें प्रदान किया। और तुमने उसे यूं ही गवां दिया, क्योंकि उसका मकसद ही था लोक कल्याण के लिए.......

सभी प्राणियों के रूप में साथ ही उनके कष्ट को समझ पाना, उन्हें गर्व है तुम पर लक्षणा। आओ सभी मिलकर नागमाताओं को धन्यवाद दे, कि उन्होंने हमें सत्कार्य के लिए शक्ति प्रदान की और साथ ही साथ उनके सही उपयोग का सामर्थ्य और अवसर भी प्रदान किया, कहते हुए उन्होंने जैसे मंदिर में प्रवेश किया। अचानक मंदिर अत्यंत प्रकाश के साथ प्रकाशित हो उठा। शंख अपने आप बजने लगे।

उस स्थान पर नागमाता, सरोवर देवी, वह बालक, राजकुमार और स्वयं नागराज भी एक साथ नजर आने लगे। सभी के चेहरे का तेज देखते ही बनता था। तब सरोवर देवी देखते ही देखते नागमाता में विलीन हो गई। और बालक एवं राजकुमार दोनों ही नागराज की शक्ति में विलीन हो गए।

यह चमत्कार देख, लक्षणा और कदंभ कुछ समझने की चेष्टा न करते हुए उन महान शक्तियों को प्रणाम किया। और उनकी विशेष आराधना की। तब पूर्ण संतुष्ट हो नागराज कहने लगे.....लक्षणा इस सृष्टि में शक्ति, ज्ञान और सामर्थ्य प्राप्त कर लेने के पश्चात भी परीक्षा का भी विधान है। उसमें उत्तीर्ण होने वाला विशेष कृपा प्राप्तकर्ता है। लेकिन अनुत्तीर्ण होने पर वे शक्तियां कुछ विशेष पल प्रदान नहीं करती। वे साथ होकर भी उस साधक का पूर्ण समर्थन नहीं करती, क्योंकि वे भली भांति जान जाती है, कि उनका उपयोग करने वाला स्वार्थी और लोक कल्याण की भावना से रहित है।

लक्षणा लेकिन हमें गर्व है, कि इस सृष्टि का चयन तुम्हारे रूप में कदापि गलत नहीं है। तुम परीक्षा में सफल हुए। ये राजकुमार, बवंडर, सरोवर, बालक और देवी सब कुछ हमारे ही प्रतिरूप थे। जिन्हें तुम्हारी ही परीक्षा के लिए अब तक अस्तित्व में बनाए रखा था।

लक्षणा तुम्हारे उत्तीर्ण होते ही इन्हें मुक्ति मिल गई। तुम्हारे शक्तियों के प्रभाव से ये सभी बहुत गर्व महसूस कर रहे है। तुम्हारा निर्णय भावपूर्ण और पूर्ण सार्थक था लक्षणा, इसलिए हम तुम्हें संपूर्ण शक्तियां वापस लौटाते हैं। और आशीर्वाद देते हैं कि तुम जल्द ही अपने लक्ष्य को प्राप्त करो। जहां तक हम देख पा रहे है विपरित शक्तियां भी तुम्हें समर्थन देती है। हमेशा प्राणियों की कुशलता का विचार मन में रख आगे बढ़ तुम्हारा कल्याण हो, यह कहते हुए दोनों नागमणियां  पुनः लक्षणा को प्राप्त हो गए और नाग माता एवं नागराजन अंतर्ध्यान हो गए।

लक्षणा अपने परीक्षा में उत्तीर्ण हो और भी प्रफुल्लित हो बार-बार आचार्य चित्रसेन जी और गुरुदेव को धन्यवाद कर कदंभ की ओर देखती। तब गुरुदेव ने उन्हें नियत तिथी आंक और भी तप करने की सलाह के साथ उन्हें विदा किया। और वे मंदिर से चल पड़े।

लक्षणा ने घर पहुंच अपने प्रतिरूप छाया को जो अब तक लक्षणा के रूप में उनके घर में विद्यमान थी। घर वालों को कोई शक न हो, ताकी घर वाले लक्षणा की अनुपस्थिति से परेशान न हो। अपने आ जाने पर अपने उस प्रतिरूप छाया को धन्यवाद कहे विश्राम करने को कहा, क्योंकि पुनः प्रातःकाल उन्हें हिमगिरी पर्वत की और विशेष पूजन और तपस्या के लिए  निकलना होगा।

क्रमशः.....

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